Saturday, March 1, 2008

सोचो

कभी सोचा मंजिल बनाकर,
ये गरीब मजदूर किधर जायेंगे,
इनके बच्चे वर्षों बाद,
इस शहर में कोई सड़क बनाएगे,
लाचार इनकी बेटी को,
रईस घर के बच्चे कामवाली बाई कहेंगे,
शाम तलक तंग बस्ती में,
इनके बच्चे इंतजार करेंगे ,
रात शहर की गोद में थके मांदे सोयेंगे ,
दूसरे दिन की सुबह और खिलती धूप में ,
ये मजदूर मजदूरी के ठियों पर दिखेंगे ,
कभी सोचा मंजिल बनाकर ,
ये गरीब किधर जायेंगे ।

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