जंगलराज
जीना अब उधारी है
महंगाई अब भारी है
लूट अब मंत्रा है ,
ना अब कोई संता है
सेवक अत्याचारी है
गणतंत्र की बीमारी है
सयाना अब शातिर है
बचपन अब सयाना है
बाप है डरा डरा ,
हरकते बहसियाना है
खोफजदा है मंजर ,
राम है गायब ,
रावन है अन्दर ,
है हर आँख में आँसू ,
हो गए गम समुन्दर ,
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