Sunday, September 29, 2019

अवकाश

अवकाश मिला नौकरी से तो भूल पाया मोह माया
मिला जब अपने आप से तो थोड़ा खुद को समझ पाया। 

अनकही

पेड़ों का दर्द, बादलों ने समझा
और बरस गये।
इन्सानों के दर्द को इन्सान ना समझा
कितने हैं  जो रोटी को तरस गये।

पशु लावारिस सड़कों पर, पंछी बेघर आसमानों में भटक रहे।
इन्सान  दिमागवाला अधर्मी,  रिश्वत बेहिसाब गटक रहे।
 कौन सुने किसकी, किसको सुनाई दे रही सिसकी।
जो सत्ता के मद में  चूर है  जिसपे पैसा   भरपूर  है ।
दुनियां के दुख क्यों  देखे।
आखों पर काला चश्मा हो
तो दुख तो उससे कोसों दूर है।
गृहस्थी लिया बैठा इन्सान बक्त के हाथों मजबूर है।
इन्सान धरती पर, सोचता तो है चन्द्रमा के बारे में
करता है मन्गल की कामना  मगर इन्सानियत से कितना दूर है।


इल्जाम

कभी ऐसा भी होता है
कहीं  वैसा भी होता है।
कभी किसी का गा दिया  गीत
कभी किसी का बजा दिया  संगीत
तो सेलेब्रिटी, फनकार "कलाकार और मशहूर हो गये।
और हमने मेहनत से लिखी अपनी मौलिक रचना  सुना दी
तो साला हम फालतू  और फिजूल हो गये।
वाह रे दुनियां  हम तुझे समझ ना सके।
कि हम क्या  से क्या हो गये। 

Saturday, September 28, 2019

दिल

दिल टूटना भी अच्छा होता है।
शहर भर मैं घूमने वाला भी घर पर होता है ।
अरे टूटता दिल उसका है।
जो दिल का सच्चा  होता है।
दिल टूटना भी तो अच्छा होता है । 

Friday, September 27, 2019

मकसद

           दुनियां में  पैदा हुये,  रहे, और मर गये।
कोई बताये हमें,  कि वो जमाने को क्या  दे गये। 

हुनर

जिन्दगी जीने का हुनर
अगर कोई शख्स जानता हो।
तो मुझको बताये।
वर्ना  जिस दुनियादारी वाली लाईन में।
मैं  खड़ा हूँ ं
वो भी  मेरे  पीछे आये।

Thursday, September 26, 2019

परख

         मर नहीं सकता।
 इसलिए मरने की बात करता हूँ।
        बात दरअसल  ये कि
 चेहरे पढ़कर चाहनेवालों की तलाश
            मैं करता  हूँ ।



खूबसूरत शहर

    चुनिन्दा शहरों में से एक
इस शहर में मैं  जीने आया हूँ।
       आनन्दित प्रकृति है।
आनन्द का रस पीने आया हूँ।
होंसलौ पर  है विश्वास
प्रगति पथ पर आगे बढ़ने आया हूँ ।
बन रहे दोस्त है दोस्त मेरे
हालातों के दुश्मनों से मैं  लड़ने आया  हूँ।
अपने सपनों में हकीक़त का रंग भरने आया हूँ ।
किस्मत की क्या बात करू।
मुनासिब बक्त लाया  हूँ ।
चुनिंदा  शहरों में से एक

 इस शहर में मैं जीने आया हूँ