कितना अहम था इन्हें जब जीवित थे कि नाक पर मक्खी को भी नहीं बैठने देते थे ,
आज जब ये जीवित नहीं तो देखो चेहरे पर मक्खियाँ भिन भिना रही हैं ,
मुर्दे ना बोलते है ना देखते हैंना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
"आज ये जीवित नहीं हैं तो लोग जल्दी मचा रहे हैं , क्या घर के क्या बाहर के वर्ना लोग घन्टौ इन्तजार करते थे ।
आज जब ये मर गये तो श्मशान ले जाने की जल्दी है ।
जिन्दा थे तो लोग इनके सामने मोबाइल तो क्या मुह भी ना खोलते थे
आज जब इनका दाह-संस्कार हो रहा है तो लोगों का मुह भी चल रहा है और मोबाइल भी
कितना अहम था इन्हें जब ये जीवित थे
मुर्दे ना बोलते हैं देखते हैं ना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
कितना अहम था इन्हें जब ये जीवित थे ।
इनका वहम था कि लोग इन्हें प्यार करते है,
सच ये था कि लोग इनके सामने प्यार करने का उम्दा अभिनय करते थे,
बात दरअसल स्वार्थ साधने की रहा करती थी, इनकी भी और लोगों की,
जो बोया वही तो काटा था और यही घाटा था ।
कितना
अहम था इन्हें जब ये जीवित थे।
मुर्दे ना बोलते है ना देखते हैं ना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
आज जब ये जीवित नहीं तो देखो चेहरे पर मक्खियाँ भिन भिना रही हैं ,
मुर्दे ना बोलते है ना देखते हैंना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
"आज ये जीवित नहीं हैं तो लोग जल्दी मचा रहे हैं , क्या घर के क्या बाहर के वर्ना लोग घन्टौ इन्तजार करते थे ।
आज जब ये मर गये तो श्मशान ले जाने की जल्दी है ।
जिन्दा थे तो लोग इनके सामने मोबाइल तो क्या मुह भी ना खोलते थे
आज जब इनका दाह-संस्कार हो रहा है तो लोगों का मुह भी चल रहा है और मोबाइल भी
कितना अहम था इन्हें जब ये जीवित थे
मुर्दे ना बोलते हैं देखते हैं ना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
कितना अहम था इन्हें जब ये जीवित थे ।
इनका वहम था कि लोग इन्हें प्यार करते है,
सच ये था कि लोग इनके सामने प्यार करने का उम्दा अभिनय करते थे,
बात दरअसल स्वार्थ साधने की रहा करती थी, इनकी भी और लोगों की,
जो बोया वही तो काटा था और यही घाटा था ।
कितना
अहम था इन्हें जब ये जीवित थे।
मुर्दे ना बोलते है ना देखते हैं ना कुछ करते हैं बस यूँ ही पड़े रहते हैं
1 comment:
आनुपम
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