Friday, February 22, 2008

मेहबूब


मुखड़ा मेरे मेहबूब का सुंदर है,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ,
वो जलवे, वो आखों के निमंत्रण पढ़ पाता हूँ ।
उसके दिल कि धड़कन, व्याकुल मन समझता हूँ ।
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ।
उसके होंठों के कम्पन, जुल्फों की आंधी से बचता हूँ ,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ।
उसके श्रन्गारों का मतलब,उसके व्रत रखने का मकसद मालूम मुझे,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ
साथ पड़े थे, साथ खेले थे, साथ लड़े थे,
परिणय बन्धन समझता हूँ ।
उसके घर की कल्पना, सागर सा सपना ,
उसके प्रश्न समझता हूँ ,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ।
उसका असमय मिलना - विदा होना ,
यादों में प्यार करना समझता हूँ ,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ।
मन्दिर की आरती , मस्जिद की अजाने ,
उसके दिल से निकली दुआएँ पड़ हूँ पाता हूँ ।
उसके निर्मल ह्रदय, तन की खुशबू ,
उसके घर की तरफ़ से आती हवाओं का पैगाम समझता हूँ .
उसके पायल की झनक , कंगन की खनक ,
उसके चुप रहने से मुस्कराने तक का सफर मालूम मुझे ,
वैसा गीत नहीं लिख पाता हूँ ।

1 comment:

समयचक्र said...

bahut sundar likhate rahiye abhaar