लुटता रहा हिंदुस्तान सिकंदर के जमाने से,
आती रही आवाज घुन्गरुओ की की महल के द्वारों से,
हरदम पसीना गिरा है बेबसी का, ये आलीशान मन्दिर हवेली बनाने से,
शान्ति मे अशांति कराते रहे नमक हराम,
खाते रहे निवाले, पीते रहे शराब दुश्मन के प्यालों से ,
यहाँ जंगल राज चलता है, बड़ा छोटे को नचाता है ,ऊँगली के इशारों से ,
आई थी आशा की ज्योति, गाँधी के आन्दोलन चलाने से ,
आजादी की रौशनी आई नेहरू के सत्ता चलाने से ,
नेहरू गए विकास कम हुआ देश का ,
घर भरे नेताओं के सत्ता चलाने से,
मिलती कुर्सी पीते शराब, आता शबाब गरीब घराने से,
हिंदुस्तान लुटता रहा सिकंदर के जमाने से.
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