सच सपने बेचकर
मच्छरों के साथ झुग्गी में सो रहा है,
झूठ मोबाइल लिए
मक्कारी और बदमाशी के साथ चौराहे पर घूम रहा है,
नेता ले रहे गुंडों की क्लास
और नेता आदर्शों की किताब रद्दीवाले को बेच रहा है ,
प्रेम हो गया पैसा,
पैसा हो गया प्यार, स्नेह की गंगोत्री है पैसा ,
पैसे से शुरू हुआ जीवन का व्यापार ,
इंसा हो गया बैचैन और लाचार ,
सब्जी रोटी खाता नहीं ढंग से ,
आदमी है कि बड़ा बनने की ललक में,
आदमी - आदमी को खा रहा है ।
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