फूल सा चेहरा था, ऋतू सावन थी ,
उस दीवाने के दीवानेपन से,
वह चांदनी सी शर्माती थी ,
इस गर्दिशी दौर में , आए अनेक मोड़ हैं ,
हालत अच्छी नहीं थी दीवाने की,
चंद सिक्के कर गए विदाई चांदनी की ,
अक्सर बड़े शहरों में यही होता है ,
कलाकार मन्दिर से जुदा होता है,
ना गाओ गीत ना गाओ गजल ,
इसी इश्क से निगाहें किसी की नम हैं ,
सिलसिले शुरु हुए थे,
बालू के घरौंदों से , तय किया उसने आज तक,
सपनो का सफर, हुआ वक्त का कत्ल एक सदी के बाद,
वह चाँदनी किसी की रागनी है ,
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